Gyanvapi Survey : पश्चिमी दीवार के पुराने मंदिर के अवशेष सामने आए, हिंदू पक्ष को मिले 32 और सबूत |

ज्ञानवापी परिसर: मस्जिद निर्माण में हिंदू मंदिर के ढांचे का इस्तेमाल, पश्चिमी दीवार अक्षत रही

Jan 29, 2024 - 01:29
Jan 30, 2024 - 08:24
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Gyanvapi Survey : पश्चिमी दीवार के पुराने मंदिर के अवशेष सामने आए, हिंदू पक्ष को मिले 32 और सबूत |

हाल ही में जिला जज की अदालत में प्रस्तुत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की गहन अध्ययन रिपोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर के ऐतिहासिक संरचना पर नई रोशनी डाली है। रिपोर्ट के अनुसार, ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार, जो पहले से मौजूद मंदिर का एकमात्र शेष हिस्सा है, का संरक्षण किया गया है। इस ऐतिहासिक खोज से यह सामने आया है कि ज्ञानवापी परिसर में मस्जिद के निर्माण के लिए विद्यमान हिंदू मंदिर को ध्वस्त किया गया था, लेकिन इस प्रक्रिया में पश्चिमी दीवार को बिना किसी क्षति के संरक्षित रखा गया।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मंदिर के ध्वंस और मस्जिद के निर्माण से पूर्व, पश्चिमी दीवार के कुछ खंडों में नए उपयोग के अनुसार संशोधन भी किए गए थे। इस खोज से इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के समक्ष ज्ञानवापी परिसर के इतिहास को नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर प्राप्त हुआ है। यह अध्ययन न केवल भारतीय इतिहास के पन्नों में एक नया अध्याय जोड़ता है, बल्कि ज्ञानवापी के ऐतिहासिक महत्व को भी उजागर करता है।

ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार के नए खुलासे: एएसआई रिपोर्ट में उजागर हुए अनसुलझे रहस्य

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ताजा रिपोर्ट में ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार से जुड़े कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी दीवार के उत्तरी और दक्षिणी कोनों में परिवर्तन किए गए हैं। यहां पर लगे सादे पत्थर के स्लैब, पहले से मौजूद संरचना की ढली हुई दीवार की सतह के बिल्कुल विपरीत हैं, जो इसके पुराने स्वरूप में किए गए बदलावों को दर्शाता है।

एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में पश्चिमी दीवार के हर एक इंच का विस्तृत विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण से न केवल पश्चिमी दीवार की संरचनात्मक विशेषताओं का पता चला है, बल्कि इसके साथ 32 और अहम प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं जो हिंदू मंदिर की मौजूदगी को संकेत करते हैं। ये प्रमाण ज्ञानवापी की इतिहासिक पृष्ठभूमि और उसके विभिन्न युगों में हुए परिवर्तनों को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इस नई जानकारी के साथ, इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के समक्ष एक नई दिशा में शोध करने का अवसर उपलब्ध हुआ है।

ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार और प्रवेश द्वारों में ऐतिहासिक परिवर्तन: एएसआई रिपोर्ट का विश्लेषण

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की नवीनतम रिपोर्ट के वॉल्यूम-1 में, ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार को लेकर एक पूरा चैप्टर समर्पित है, जो इस क्षेत्र की ऐतिहासिक संरचनाओं में हुए महत्वपूर्ण परिवर्तनों को प्रकाश में लाता है। इस रिपोर्ट में खासतौर पर दक्षिणी प्रवेश द्वार की सीढ़ियों के ऊपरी छत पर मिले राजमिस्त्री के निशानों का उल्लेख किया गया है, जो इस क्षेत्र में समय-समय पर किए गए निर्माण कार्यों की ओर इशारा करते हैं।

इसके अलावा, उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित उत्तरी हॉल और दक्षिणी हॉल के प्रवेश द्वारों में भी बड़े संरचनात्मक परिवर्तन देखे गए हैं। दोनों हॉल के प्रवेश द्वारों को पत्थर और गारे से बंद कर दिया गया है, जो इस ऐतिहासिक स्थल के इतिहास में आए बदलावों को दर्शाता है। इन निष्कर्षों से न केवल ज्ञानवापी के अतीत को बेहतर समझने में मदद मिलती है, बल्कि यह भी पता चलता है कि समय के साथ किस प्रकार इसकी संरचनात्मक विशेषताएं बदली हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की हालिया रिपोर्ट में ज्ञानवापी के प्रवेश द्वारों और पश्चिमी दीवार से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण वास्तुशिल्पीय परिवर्तनों का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रवेश द्वारों के अग्रभागों का मूल वास्तुशिल्प डिजाइन पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है, जिससे इस ऐतिहासिक स्थल की मूल विशेषताओं की पहचान में बाधा आई है।

इसके अतिरिक्त, पश्चिमी दीवार में मोरल आर्ट के लिए ईंटों और चूने के मोर्टार का उपयोग करके नए संरचनात्मक तत्व जोड़े गए हैं, जो मूल वास्तुशिल्प पैटर्न से बिलकुल अलग हैं। इसके साथ ही, आंतरिक सतहों पर मोटे चूने का प्लास्टर किया गया है, जिससे संरचना की मूल विशेषताओं का पता लगाना कठिन हो गया है। ये निष्कर्ष ज्ञानवापी के इतिहास और वास्तुकला के अध्ययन में नई दिशाएं प्रदान करते हैं और इसकी सांस्कृतिक विरासत के गहन अध्ययन की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

जगह की कमी और सुरक्षा जांच चौकी बनी बाधक

हाल ही में जारी की गई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट में ज्ञानवापी के पश्चिमी कक्ष की उत्तरी और दक्षिणी भुजा के बारे में नई जानकारी प्रकट की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, कक्ष की दक्षिणी भुजा को ग्रिल बाड़ के पास तक पश्चिम की ओर खोजा जा सकता था। हालांकि, स्थल की जगह की सीमाओं और सुरक्षा जांच चौकी की मौजूदगी के कारण, पश्चिमी हिस्से का पूर्णतया पता नहीं लगाया जा सका।

यह खुलासा इस प्राचीन स्थल की संरचनात्मक जटिलताओं और इतिहास को समझने में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल ज्ञानवापी के भौतिक स्वरूप को समझने में मदद करता है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्वता को भी उजागर करता है। इस तरह के अध्ययनों से हमारी धरोहर के प्रति समझ और संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं।

  1. परिसर में एक बड़ा केंद्रीय कक्ष था जिसका प्रवेश द्वार पश्चिम से था और अब उसे पत्थर की चिनाई से बंद कर दिया गया है।

  2. केंद्रीय कक्ष के मुख्य प्रवेश द्वार पर जानवरों और पक्षियों की नक्काशी और सजावटी तोरण था।

  3. प्रवेश द्वार के ललाट बिंब पर की गई नक्काशी को काट दिया गया है और कुछ हिस्सों को पत्थर, ईंट और गारे से ढक दिया गया है।

  4. तहखाने में तीन कक्षों के अवशेष हैं, लेकिन पूर्व दिशा की ओर उनका विस्तार अज्ञात है।

  5. परिसर में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों और प्रतिमाओं का संरक्षण है।

  6. इमारत में पहले से मौजूद जानवरों की आकृतियां थीं, जिन्हें बाद में हटा दिया गया, लेकिन उनके अवशेष अभी भी मौजूद हैं।

  7. मस्जिद के निर्माण के लिए मंदिर के कुछ हिस्सों का उपयोग किया गया, लेकिन उन्हें जरूरत के अनुसार बदला गया है।

  8. इमारत की पश्चिमी दीवार पत्थरों से बनी है और सुसज्जित की गई है।

  9. उत्तर और दक्षिण हॉल के मेहराबदार प्रवेश द्वारों को अवरुद्ध किया गया है।

  10. उत्तर दिशा के प्रवेश द्वार पर छत की ओर जाने वाली सीढ़ियां आज भी प्रयोग में हैं।

  11. केंद्रीय कक्ष का कर्ण-रथ और प्रति-रथ पश्चिम दिशा के दोनों ओर दिखाई देता है।

  12. परिसर में प्रमुख रूप से खोजे गए प्रतीकों में शुभ 'स्वस्तिक', भगवान शिव का प्रतीकात्मक 'त्रिशूल', और 'श्री राम' और 'शिव' के सम्मानित नामों से अंकित एक शिला शामिल हैं।

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